मंगलवार, 1 जनवरी 2019

सरकार कर्जा माफ कर किसानों को कमजोर बनाए या सुविधाएं देकर मजबूत


मैं ना किसानों के खिलाफ हूं, ना सरकार के। लेकिन, निर्णयों के खिलाफ जरूर हो सकता हूं। यकीनन देशहित में विचार रखने की हम सभी आजादी रखते है। इसीलिए इस स्वतंत्रता का उपयोग कर रहा हूं। तीन राज्यों में नई सरकार बनते ही किसानों के कर्जा माफ का मुद्दा ज्वलंत है। राजस्थान में भी गहलोत सरकार ने इसकी घोषणा कर दी। यह सरकार के लिए इसलिए जरूरी था, क्योंकि इस बड़े चुनावी वादे के सहारे कांग्रेस अपना मुकाम हासिल करने में कामयाब रही। कृषि प्रधान देश में किसान की भावनाओं का ध्यान रखना हर सरकार का कर्तव्य है। पूर्ववर्ती सरकार ने भी किसानों को मोहित करने के लिए यह दाव खेला। लेकिन शायद आम इंसान को नई सरकार की घोषणा सहज लगी। चुनावी समय के दौरान हर पार्टी अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए ऐसी घोषणाएं करना जरूरी समझती है। संभवत: हमारे देश में यह परिपाटी की तरह आगे बढ़ रहा है कि लालच के बिना कुछ काम नहीं होता, चाहे उसके परिणाम घातक हो।
राजस्थान की ही बात करे तो सरकार की कर्ज माफी घोषणा से 18 हजार करोड़ रुपए का भार भी बढ़ेगा। इससे लाखों किसान राहत की सास भी लेंगे। लेकिन धरातल पर यह कहां तक सही है यह सोचना होगा। क्योंकि आत्महत्या तो बेरोजगार भी कर रहे हैं। आत्महत्या तो कम अंकों से उत्तीर्ण होने वाले छात्र भी करने का प्रयास करते है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम उन्हें अच्छे अंकों से उत्तीर्ण कर दे। आत्महत्या के डर से हम अयोग्य व्यक्ति को आरएएस बना दे, आईएएस बना दे। ऐसी परिस्थितियों में सरकारें क्या करती है। सीधा सा जवाब है, काउंसलिंग की जाती है। मोटिवेट किया जाता है। ताकी कोई गलत कदम नहीं उठाए। इसी परिप्रेक्ष्य में हमें कर्ज को समझना होगा।
आज किसान खाद के लिए लंबी कतार में लगा है। घंटों तक कतार में संघर्ष करने के बाद भी उसे खाद नहीं मिल पाती। वह गांव से शहर की ओर दौड़ लगता है और तीन-चार चक्करों के बाद उसे आधी अधूरी मात्रा में खाद मिल पाती है। सहकारी व्यवस्थाओं में खाद लेने वह नाकामयाब रहता है तो बाजार से भारी भरकम राशि अदा कर वह खाद का जुगाड़ करता है। ताकी, वह अपनी फसलों को जीवन दे सके। यही हाल बुवाई के समय बीजों के लिए होते है। किसान अपनी खेत की बुवाई, जुताई से लेकर फसल कटाई तक संघर्ष करता है। इसके बाद भी यदि पैदावार सही नहीं होती तो वह निराशाजनक स्थिति में चला जाता है। अब सवाल यह उठता है कि सरकार किसानों की जिंदगी को आसान बनाने में मदद क्यों नहीं करती।
क्या सरकारें ऐसी व्यवस्था नहीं कर सकती, जिससे किसानों को खाद बिना कतार में लगे मिल सके। खाद की कीमत न के बराबर या सहकारी समितियों के माध्यम से निशुल्क दिलवा सके। पैदावार की उपज उच्च दामों में हो सके। फसल कटाई के लिए बिना शुल्क चुकाए मशीनरी का इंतजाम कर सके। किसानों को सहयोग करने के लिए सरकार के पास अन्य विकल्प भी है। आज किसान मंडियों में अपना माल बेचने जाता है तो दिनभर भूख-प्यास से जूझता हुआ नजर आता है। वह घर से अपना अनाज मंडी तक लाने में हजारों रुपए का किराया खर्च कर देता है। क्या, किसान को अपनी मेहनत की कमाई को बिना किसी झंझट के हासिल कर सके यह हक नहीं है। कर्जा माफ कर हम कमजोर कर रहे हैं। यह थोड़े दिनों की खुशी है, लेकिन यह जिंदगी गुजारने का विकल्प नहीं। इससे किसान को कमजोर किया जा रहा है। उन्हें मजबूत करने के लिए सुविधाएं बढ़ानी होगी। किसानों की जरूरतों को आसानी से उपलब्ध करवाना होगा। ताकी वह देश की आजादी के इतने सालों बाद भी दूसरों पर निर्भर नहीं रहे। किसान देश का मजबूत पक्ष है। उसके योगदान के बिना देश अधूरा है। लेकिन यह विचारणीय है कि हम कब तक थोड़ी सी राहत देकर उनकी जीवन शैली के साथ खिलवाड़ करेंगे। हमें किसानों का स्तर ऊंचा रखने के लिए उनके हित में ऐसे कदम उठाने होंगे कि वह कर्ज के बजाए अपना संचय शुरू करे।
फिर भी सरकार के कर्ज माफी के निर्णय का स्वागत है, लेकिन हमें किसानों को मजबूत करने के लिए भविष्यकालीन सोचना होगा। ताकी आने वाली पीढिय़ां किसान को गरीबी के रूप में देखने की बजाए देश की मजबूती की हिस्सेदारी के रूप में देखे।
- अमित शाह
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amitbankora@yahoo.com