जनसंख्पया दिवस विशेष : कल्याण मंत्रालय ने पहले से ही पूरे राष्ट्र में ‘आपदा में परिवार नियोजन की तैयारी, सक्षम राष्ट्र और परिवार की पूरी जिम्मेदारी’
की थीम पर जनसंख्या पखवाड़ा मनाना शुरू किया है। ताकी देश में बढ़ती जनसंख्या को रोका जा सके। हर साल जनसंख्या दिवस पर देशभर में कार्यक्रम आयोजित कर परिवार कल्याण की बात की जाती है। लेकिन, फिर भी इसके
परिणाम आशा अनुरूप नहीं दिखाई दे रहे । इसकी वजह यह नहीं कि हमारी सरकारें या प्रशासनिक तंत्र सही ढंग से काम नहीं कर पा रहा है। वजह नैतिकता और समझ की है। यह ऐसा मुद्दा है जिसमें जब तक कठोर काननू की प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती तब तक परिवार कल्याण का तंत्र सिर्फ आपसे अपील कर सकता है। समझ और नैतिकता आम व्यक्ति को निभानी होगी। राष्ट्र की सेवा करना सिर्फ राष्ट्रीय पर्वों में देशभक्ति दिखाने से नहीं है। हर व्यक्ति का इतना अच्छा नसीब नहीं होता कि वह सीमा पर दुश्मनों से लड़कर देश सेवा कर
सके। लेकिन वह बिना लड़ाई लड़े भी देश
सेवा कर सकता है।
जनसंख्या नियंत्रण में योगदान करना भी राष्ट्र की सेवा ही है। यह भी देशभक्ति का ही एक अंग है। क्योंकि आज राष्ट्र में बढ़ती जनसंख्या ने चिंताजनक हालात पैदा कर दिए है। जिसका भविष्य अंधकारमय हो सकता है। इसके लिए सरकारें अकेली कुछ नहीं कर सकती। इसके लिए हर परिवार का योगदान निश्चित रूप से चाहिए।
जिस गति से जनसंख्या बढ़ रही है, उससे साफ है भविष्य में देश की आर्थिक स्थिति, नीतियां और आने वाली पीढ़िया दलदल में फंसती नजर आ रही है। यह बुरी तरह से प्रभावित हो सकती है। जनसंख्या विस्फोट आज का ज्वलंत मुद्दा है। भारत के लिए आंकड़ें चिंताजनक है। यूनाइटेड नेशन्स की रिपोर्ट तो वाकई डरावनी है। इस संदर्भ में बात करे तो जल्द की हमें जनसंख्या नियंत्रण के लिए ठोस निर्णय लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। यूनाइटेड नेशन्स पॉपुलेशन फंड 2019 का सर्वे बताता है कि पिछले दस सालों में भारत की जनसंख्या 1.2 प्रतिशत की सालान दर से बढ़ी है। जबकि चीन की वृद्धि दर महज 0.5 फीसदी सालाना रही। आंकड़ों में जाए तो अभी चीन की आबादी 142 करोड़ एवं भारत की 136 करोड़ है। महज 6 करोड़ का अंतर है। यह महज इसलिए है क्योंकि हमारी जनसंख्या इस दर से बढ़ती रही तो कुछ ही सालों में हम चीन से आगे निकल जाएंगे।
फिलहाल देश कोविड से जूझ रहा है। इसी महामारी ने देश के हालात पर प्रकाश डालने के लिए मजबूर किया। गांवों से रोजगार के लिए शहर में हुए पलायन लोगों की व्यथा ने हर किसी को झकझोरा। गरीबी और सरकार की योजनाओं का हर आम व्यक्ति तक नहीं पहुंचने का कारण भी तो बढ़ती जनसंख्या ही है। कोविड को नियंत्रण करने में दूसरे देशों के उदाहरण दिए जाते हैं। लेकिन भारत और दूसरे देशों की जनसंख्या पर तुलना कीजिए। आज भारत जिन संसाधनों
के साथ काम कर रहा है, वह दूसरे देशों से मजबूत होंगे, लेकिन हमारे यहां की जनसंख्या ही इतनी है कि व्यवस्थाएं बनने से पहले ही बिगड़ जाती है। विशाल जनसंख्या में भरण-पोषण करना ही हमारे सामने बड़ा प्रश्न चिन्ह है। मतलब, हम कोविड जैसी आपदा से भी समझ सकते है कि जनसंख्या का बढ़ना देश के लिए कितना खतरनाक है।
यदि हम आंकड़ों की बात नहीं भी करे तो भी जनसंख्या नियंत्रण देश के बिगड़े हालातों को सुधारने
लिए जरूरी है। इसके लिए देश के हर नागरिक को आगे आना होगा। यह देशहित के सहित परिवार का हित भी साधेगा। गरीबी, भूखमरी, भ्रष्टाचार, कालाबाजारी जैसी गतिविधियों की रोक भी जनसंख्या कम होने पर ही रुक सकती है। आज देश में गरीबी रेखा जैसे शब्द जो इजाद हुए है, उसके लिए जिम्मेदार भी हम स्वयं ही है। सीमित परिवार से ही आदर्शों की परिकल्पना का निर्माण हो सकता है। भविष्य में बढ़ता बोझ कम करने के लिए आमजन को जागरूक होना पड़ेगा। यदि इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो फिर सरकार को कठोर कानून के लिए अपने कदम बढ़ाने होंगे। फिर हमें ही यह तानाशाही रवैया नजर आने लगेगा।
-
- अमित शाह