बुधवार, 1 सितंबर 2021

बिना आर्थिक रूप से भी की जा सकती है मदद

जन्माष्टमी के दिन में इंदौर, मध्यप्रदेश गया हुआ था। इंदौर से ससुराल होने के नाते काफी लगाव भी है। इसी दिन धर्मपत्नी के मासाजी और मौसीजी भी पुनः अपने घर विजयवाड़ा, आंध्रप्रदेश जा रहे थे। हम उन्हें छोड़ने इंदौर जंक्शन के प्लेटफॉर्म नंबर 1 पर गए। जहां बाहर हम बातचीत कर ही रहे थे कि दो युवक हाथ में एक छड़ी को लेकर आगे बढ़ते हुए रेलवे स्टेशन से बाहर आते हुए दिखे। पहली बार देखा तो ऐसा लगा कि दोनों में एक साथी नेत्रहीन है और दूसरा रास्ता दिखाकर बाहर की ओर ला रहा हैं। मैं उनके सामने ही खड़ा था। लेकिन, उन्होंने छड़ी को आगे बढ़ाते हुए पूछा, भाई साहब! बाहर जाने का यहीं रास्ता है क्या ? फिर हमें ज्ञात हुआ कि इसका मतलब दोनों नेत्रहीन है, लेकिन वह स्वयं ही एक-दूसरे की मदद कर आगे बढ़ रहे हैं। इस दौरान मेरे मन की भी इच्छा हुई कि मैं उन्हें बाहर तक छोड़ दूं, इतने में ही धर्मपत्नी भी बोल उठी कि आप उन्हें बाहर तक छोड़ आइए न। 


मैं तुरंत उनके नजदीक गया। मैंने मेरा हाथ दिया तो एक साथी ने मेरा कंधा पकड़ लिया। दोनों को मैन गेट के बाहर तक छोड़ा। हालांकि मेरे मन में था कि उन्हें उनके गंतव्य स्थान तक छोड़ने के लिए ऑटो किराए पर लेकर बिठा दूं। लेकिन, वह नेत्रहीन थे, फिर भी आत्मस्वावलंबी थे। उन्होंने मुझे धन्यवाद भी दिया और कहां कि हम अब चले जाएंगे। हालांकि यह अत्यंत साधारण सी लगने वाली मदद है। लेकिन, मेरे ख्यालात में ऐसे छोटे-छोटे सहयोग ही व्यक्ति को सुकून की सांस भी देते है। 

हालांकि, मैं यह नहीं समझता कि मेरी मदद छोटी थी या बड़ी। या हो सकता है वह नेकी के तहत आता ही नहीं हो। लेकिन, वह नेत्रहीन होते हुए भी स्वावलंबी होने का बड़ा संदेश भी दे गए।



सोमवार, 31 मई 2021

तंबाकू से मुक्ति के लिए ग्राम स्तर पर प्रोफाइल तय करना जरूरी

आज तम्बाकू निषेध दिवस है। हर साल की तरह एक दिन इस दिवस का प्रचार कर थम जाना उचित नहीं है। हमारा स्वास्थ्य ढांचा काफी हद तक तंबाकू जनित रोगों से प्रभावित हो रहा है। करोड़ो रुपए धूम्रपान से होने वाले प्रतिकूल प्रभाव को सही करने के लिए फूंके जा रहे हैं। इसके लिए सरकारी तंत्र के साथ ग्राम स्तर पर जिम्मेदारियां तय करना आवश्यक है।

यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसमे एक-दो की भागीदारी से सफलता मिलना मुश्किल है। इसके लिए सामूहिक भागीदार होना अति आवश्यक है। तंबाकू जनित रोगों की जानकारी होने के बाद भी इसका उपयोग धड़ल्ले से होना दुर्भाग्य के सिवाय और कुछ नहीं है।

तंबाकू से मुक्ति के लिए अब वह समय आ गया है, जिसमे ग्राम स्तर पर जिम्मेदारियां तय की जाए। जनप्रतिनिधियों यथा सरपंच और पंच के कार्यों की प्रोफाइल में तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम को जोड़ा जाए। ताकि जिम्मेदारीपूर्वक कार्य हो सके।

दूसरी बात करे तो गावों में आज भी शिक्षक का सम्मान माता पिता जैसा ही होता है। ऐसे में शिक्षकों का भी सप्ताह में एक दिन ऐसा तय होना चाहिए कि वह तंबाकू नियंत्रण जैसे कार्यक्रमों का प्रचार घर-घर तक पहुँचाए। क्योकि शिक्षक ही एक ऐसा ओहदा है जो आम व्यक्ति के संपर्क में सरल सहज रूप में होता है। 

शिक्षक के साथ स्थानीय सरकारी कार्मिक जैसे ग्राम विकास अधिकारी, पटवारी, ग्राम सेवक, स्थानीय चिकित्सा स्टाफ भी जोड़ा जाए। ताकि यह एक ऐसा अभियान का रूप ले कि तंबाकू का चलन नहीँ के बराबर हो।

वैसे सरकार अभी भी प्रयास में कोई कमी नहीँ छोड़ रही। लेकिन इसके लिए आमजन की भागीदारी जब तक सुनिश्चित नही होगी, तब तक खामियां मिलती रहेगी। नियम बनाना जितना आसान है, उतनी उसकी पालना करवाना मुश्किल होता है। ऐसे में नियमों की पालना सबसे पहले आला पद पर बैठे लोग जरूर करें, ताकी वह दूसरों को प्रेरित कर सके। 

- अमित शाह, स्वतंत्र पत्रकार।

रविवार, 7 मार्च 2021

महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए आर्थिक ताकत बढ़ाना जरूरी

भारतीय परीप्रेक्ष्य में परिवार को विकसित करने के लिए महिला की अहम भूमिका है। यह विदित है कि महिला के अभाव में पुरूष की प्रगति भी नगण्य है। लेकिन, फिर भी वर्तमान में समाजस्तर पर महिलाओं का संघर्ष पुरूष की तुलना में कहीं अधिक है। महिलाएं उतनी स्वतंत्र नहीं है, जितनी हम सामुहिक मंचों पर चर्चा करते हेैं। महिलाओं संबंधित मंचों और खास दिवसों पर महिलाओं के उत्थान की चर्चा कर समारोह के दरवाजे के बाहर आते ही सभी बातंे इती श्री हो जाती है। समाज में महिलाओं के प्रति नजरिया जब तक नहीं बदलेगा तब तक वह उस स्तर पर स्वतंत्र नहीं हो पाएगी, जितनी जरूरत है। वैसे महिलाओं के प्रति जो सम्मान और नजरिया पिछले 20 वर्षों में था, उसमें आज के समय में बदलाव हुआ है। परिस्थ्तियां बदली है। महिलाओं के सम्मान का ग्राफ बढ़ा है। लेकिन, यह काफी नहीं है। समाज में महिलाओं की बराबरी भागीदारी के लिए शिक्षा के साथ-साथ आर्थिक ताकत बढ़ानी जरूरी है। सरकार को भी इसके लिए विशेष प्रयास करने चाहिए। केंद्र हो या राज्य दोनों सरकार महिलाओं की आर्थिक स्थति में मजबूत करने का प्रयास करेगी तो महिलाओं के संघर्ष की कहानी कम होती जाएगी। 

आर्थिक स्तर को पाने के लिए जमीनी स्तर पर काम करना आवश्यक है। बेहतर तकनीकी प्रशिक्षण, सामान्य प्रक्रिया पर कर्ज लेने की सुविधा, व्यवसाय और नौकरी में महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए विशेष योग्यता का दर्जा तैयार करना होगा। कुछ योजनाएं ऐसी भी शुरू करनी होगी, जिसमें सिर्फ महिलाएं ही योग्यता रखती हो। महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुधरेगी तो वह स्वत: ही समाज में अपना मुकाम पा लेगी। इससे महिलाओं में दृढ़ता का भी विकास होगा और वह पुरूष के निर्णयों में भी अहम भूमिका निभाने में सफल रहेगी। वैसे महिलाओं के उत्थान के लिए सरकार कई योजना में भी अमल में लाई है। लेकिन इनके क्रियान्वयन में खामियां है। यह तंत्र योजनाओं को महिलाओं तक पहुंचाने से पहले ही खत्म कर देता है। नारी समाज और उनसे जुड़ी संस्थाओं को भी इस ओर गौर करना होगा। केवल विशेष दिवसों पर आयोजन करने से काम नहीं चलेगा। 

वैसे तो महिलाओं के अभाव में समाज ही नहीं बनता है। नारी से ही परिवार बनता है। लेकिन नारी को मर्यादित जीवनयापन का सलीखा सिखाया जाता है। समाज के डर से महिला एक सीमा में रहकर काम करना पसंद करती है। समाज में कई निठल्ले ऐसे होते हैं, जो महिलाओं पर आक्षेप लगाने में देरी नहीं करते। इन सब से लड़कर एक महिला को अपने परिवार को समाज में बरकरार रखना होता है। ऐसे में समाज भी खुले मंचों पर नारी को विश्वास दिलाए कि वह स्वतंत्र होकर काम करें। 

आर्थिक रूप से महिलाएं स्वावलंबी होगी तो घरेलू हिंसाओं में भी गिरावट दिखेगी। आज सभी वर्ग की महिलाएं हिंसा से अछूती नहीं है। महिलाओं के साथ शोषण का कोई आज नया विषय नहीं है। इसका भारत में ही नहीं बल्की विदेशों में भी लंबा इतिहास है। प्रतिदिन अखबारों की सुर्खियों में भी महिला उत्पीड़न पर खबरें प्रकाशित हो रही है। न्याय के लिए भी प्रक्रिया है, लेकिन लंबी न्याय प्रक्रिया में उलझने के डर से महिलाएं इसके लिए आगे भी नहीं आना चाहती। 

देश में वर्तमान में महिलाओं का सरकारी, निजी कंपनियां, पुलिस, आर्मी, मेडिकल सेवाएं, इंजीनियरिंग, वैज्ञानकि संस्थानें, शिक्षा में भागीदारी बढ़ी है। महिलाएं आत्मनिर्भर भी हुई है। लेकिन व्यवहारिकता के तौर पर दिखे तो महिलाओं को फिर भी असमान के रूप में देखा जाता है। लैंगिग रूप से समानता अब भी नहीं मिल रही है। यही वजह से है कि लड़के व लड़कियों में आज भी अंतर देखा जाता है। 

समाज में महिलाओं के प्रति स्वतंत्र नजरिया नहीं अपनापाने में हमारा टेलीविजन भी जिम्मेदार है। वहां पर आज भी महिलाओं को एक वस्तु के रूप में ही दिखाया जा रहा है। ओटीटी जैसे प्लेटफाॅर्म में महिलाओं को इस तरह दिखाया जा रहा है कि जैसे उनका हमारी संस्कृति से कोई वास्ता नहीं है। विज्ञापन एजेंसियां भी महिलाओं के माध्यम से ही प्रोडक्ट बेचने में कामयाबी समझ रही है। बुद्धिजीवियों ने महिलाओं को इस तरह पेश किया कि समाज महिलाओं को घर से बाहर निकालने भी डर रहा है। इन सभी परिस्थितियों से बचने के लिए संकल्पबद्ध तरीके से काम करने की जरूरत है। सरकार महिलाओं को मजबूत करने के लिए प्रसारण पाॅलीसी बनाए तो यह समाज के लिए यह भी अच्छा कदम होगा।

- अमित शाह