भारतीय सिनेमा को वर्तमान समय में प्रेम प्रसंग और हास्य सम्बंधित विषयों ने घेर लिया है। आज की फिल्मे प्रेम की पृष्ठभूमि पर ही अधिक बन रही है। पारिवारिक और सामाजिक फिल्मो का दौर पूर्णतया समाप्त हो चूका है। यह काफी चिंता का विषय है की आज हमारे सिनेमा में जमीन से जुडी फिल्मो का चलन बंद हो गया है।
पहले त्योहारो , भाई बहिन विशेषकर माँ को केंद्र में लेकर फिल्मो का निर्माण होता था। हिंदुस्तान में माँ का महत्व दुसरे देशो से कुछ अलग ही है। हमारे जहन में हमेशा माँ बसी रहती है। हमारा पहला शब्द ही माँ होता है। भारतीय सिनेमा में माँ को लेकर कई फिल्मो का निर्माण हुआ है। लेकिन पिछले कुछ सालो से माँ को हमारे सिनेमा में जगह नहीं मिल रही है। फिल्म में माँ को आशीर्वाद देने तक बताया जाता है इसके बाद पूरी फिल्म में प्यार व्यार चलता रहता है ।
सिनेमा के युग में काफी परिवर्तन हुए है । जिस तरह वैश्वीकरण बढ़ा है उस तरह फिल्मो में बदलाव को देखा गया है। आज की फिल्मो में वाकई करण अर्जुन की माँ गायब हो गई है।फिलहाल निर्माताओ को माँ को केंद्र में रखकर फिल्मो के निर्माण की आवश्यकता है ताकी हमारा जीवन और आने वाले वर्षो में माँ का महत्व और बड़े ।
प्रेरक : जय प्रकाश जी ।
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