ओटीटी। ओवर द टॉप प्लेटफॉर्म। आजकल खूब चर्चा में है। कोविड़ के साथ ही मानो ओटीटी के पंख लग गए। निःसंदेह आसमान में हवाओं को चिरकर यह प्लेटफॉर्म मनोरंजन की दुनिया में उच्च स्थान पर स्थापित हो रहा है। लेकिन, ओटीटी पर प्रसारित हो रही वेबसीरीज के लिए कुछ कायदे होना भी जरूरी है। अब वक्त आ गया है कि नई पीढ़ी को मनोरंजन के साथ ऐसी भाषा नहीं परोसी जाए, कि वह स्वयं को कुछ समय गुजरने के बाद सुधार न पाए। एक मजबूत किरदार के साथ संयमित शैली का होना जरूरी है।
हमारे देश ने हमेशा नएपन का स्वागत किया है। कोरोना के बाद वेब सीरिज के चलन के साथ ही हमने भी इसे अपनाया। क्योंकि मनोरंजन के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म पर यही आसरा था। 1990 और 2000 के दशक में जहां बच्चों और बड़ों के लिए साहित्य पत्रिकाएं समय को व्यतीती कराने के साथ ज्ञान का भंडार भी अर्जित करने का अवसर देती थी, वही अब सिर्फ मनोरंजन और फुहड़ता ने जगह ले ली। बच्चों के हाथों में भी व्यक्तिगत मोबाइल आ गए। क्योंकि ऑनलाइन पढ़ाई का सिलसिला चला तो यह तो होना ही था।
जीवन यापन में बदलाव को हासिल करना आवश्यक है। बदलाव ही हमें नए दौर के साथ चलने का अवसर देते हैं, लेकिन अब वक्त आ गया है कि वेब सीरीज की भाषा पर भी मंथन करने का। अधिकांश वेब सीरीज की भाषा असंयमित नजर आती है। अश्लील भाषा का प्रयोग इस प्रकार किया जा रहा है, जैसे सामान्य बातचीत हो। इसके लिए सख्ती की आवश्यकता है। क्योंकि नया दौर, नई पीढ़ी के साथ अंकुरित होता है। ऐसे में साहित्य का भाषा से ही गठजोड़ नहीं होना एक दुखदायी बात है।
वेबसीरीज के माध्यम से ऐसा नहीं है कि संदेश हमेशा निम्नस्तर का पाया गया हो। कई वेबसीरीज ऐसी भी है, जिसमें संघर्ष और कामयाबी का चित्रण बखूबी से किया गया है। लेकिन अच्छा कंटेंट होने के बाद भी आकर्षित करने के लिए अश्लीलता का चित्रण और गुंड़ाई भाषा का प्रयोग कहां उचित है। आज बच्चों के हाथों में मोबाइल है, और वह इतने एडवांस है कि उन्हें एक वयस्क से भी ज्यादा ज्ञान होता है। ऐसे में संयमित शैली की मांग होनी ही चाहिए। वेबसीरीज पर नियंत्रण के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय को स्वतंत्र कर देना चाहिए।
ओटीटी प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रदर्शित हो रहे कंटेंट पर निगरानी आवश्यक है। ऐसे मसलों पर हमेशा आरोप भी लगते है। यानी यह मामला भी उठ सकता है कि हम आजादी को छीन रहे हैं। लेकिन यह समझना आवश्यक है कि हमने कभी फिल्मों का विरोध नहीं किया। फिल्म आज भी चल रही है और कल भी चलेगी। लेकिन हमेशा विरोध कंटेंट को लेकर हुआ है। हम लिखने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन ऐसा नहीं कि इससे भावी पीढ़ियां स्वयं को ही माफ नहीं कर सके। स्वयं ही सोचिए, क्या आप कोई वेबसीरीज बिना ईयरफोन के देख सकते है। गिनी-चुनी वेबसीरीज भी नहीं होगी, जो हम परिवार के साथ देखने की हिमाकत कर सके।
हमारे यहां सबसे बड़ी विडंबना यह है कि सरकार कुछ करे, इससे पहले विरोध के स्वर मुखर हो जाते है। ओटीटी प्लेटफॉर्म को लेकर भी 2021 की शुरूआत में यह मामला उठा तो मनोरंजन की दुनिया से जुड़े दिग्गजों ने तर्क देना शुरू कर दिया। इनका कहना था कि यदि डिजिटल प्लेटफॉर्म को दायरे में लाते है तो वह उद्योग सीमित रह जाएगा। यह लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरित है। लेकिन, हम इस प्रकार तर्क देकर हमारे समाज को एक खाई में धकेल रहे है। इस क्षेत्र में अश्लीली कंटेंट परोसकर एक अच्छी आर्थिक कमाई विकसित हो सकती है, लेकिन जो संस्कृति से जुड़ी भारतीय ताकत है, उसे मजबूत नहीं किया जा सकता।
हम अब कुछ चर्चा वेब सीरीज के दृश्यों पर भी कर लेते है। यहां धूम्रपान, शराब का सेवन और नशीले पदार्थों का प्रयोग सहज रूप से प्रदर्शित किया जा रहा है। इस समय एक युवा अपनी जिंदगी की शुरूआत कर रहा होता है, ऐसे में वह जब इन दृश्यों को देखता है तो वह स्वयं भी आकर्षित होता है। वह वेबसीरीज के दमदार किरदारों को अपना आदर्श मानकर जीवन को व्यतीत करना चाहता है, ऐसे में वह उस किरदार की आदतों को भी अमल में लाने का प्रयास करता हैं। यह मंथन करना होगा कि क्या कोेई भी दृश्य बिना धू्रमपान और शराब के बिना चित्रित नहीं किया जा सकता है।
पुलिस के साथ तो एक अजीब सी ही दास्तान है। जब तक पुलिस का जवान शराब या धू्रमपान नहीं करता है, तब तक कोई भी वेब सीरीज पूरी नहीं होती है। यह हाल फिल्मों में भी है। सोचना होगा कि क्या हम सिर्फ चेतावनी लिखकर ऐसे दृश्यों को परोसने के लिए स्वतंत्र है। पुलिस की छवि इस तरह खराब करना कहां उचित है। इसका विरोध क्यों नहीं होना चाहिए। सिगरेट को तो पुलिस और पत्रकारों के लिए पर्याय बना दिया गया है। इन दो किरदारों को निभाने वाले दृश्यों में तो आपको नशे का चित्रांकन मिलेगा ही। यह अत्यंत शर्मनाक स्थिति है। खास बात तो यह है कि जो फिल्मांकन पुलिस की छवि को बेहतर दिखाने के लिए किया जा रहा है, उसमें भी धूम्रपान के दृश्य भरे पड़े होते हैं।
देश में सांस्कृतिक और मनोरंजन के विकास में नए बदलाव तो आएंगे ही, साथ ही यह औद्योगिक विकास के लिए जरूरी भी है। लेकिन हमें नए कंटेंट की ओर ध्यान बांटना होगा। क्योंकि कानून बनने पर भी ओटीटी केंटेंट सुधर जाए, यह जरूरी नहीं है। इसके लिए कठोर निगरानी जरूरी है। ऑनलाइन शिकायत का प्लेटफॉर्म बनाना आवश्यक है, ताकी अश्लील कंटेंट का विरोध आसानी से किया जाए और उस पर मंत्रालय कार्रवाई कर सके।
- अमित शाह
@amitbankora