रविवार, 28 अप्रैल 2019

लू लगने से मृत्यु क्यों होती है ?



हम सभी धूप में घूमते हैं फिर कुछ लोगों की ही धूप में जाने के कारण अचानक मृत्यु क्यों हो जाती है ?

👉 हमारे शरीर का तापमान हमेशा 37° डिग्री सेल्सियस होता है, इस तापमान पर ही हमारे शरीर के सभी अंग सही तरीके से काम कर पाते है ।

👉 पसीने के रूप में पानी बाहर निकालकर शरीर 37° सेल्सियस टेम्प्रेचर मेंटेन रखता है, लगातार पसीना निकलते वक्त भी पानी पीते रहना अत्यंत जरुरी और आवश्यक है ।

👉 पानी शरीर में इसके अलावा भी बहुत कार्य करता है, जिससे शरीर में पानी की कमी होने पर शरीर पसीने के रूप में पानी बाहर निकालना टालता है । (बंद कर देता है )

👉 जब बाहर का टेम्प्रेचर 45° डिग्री के पार हो जाता है और शरीर की कूलिंग व्यवस्था ठप्प हो जाती है, तब शरीर का तापमान 37° डिग्री से ऊपर पहुँचने लगता है ।

👉 शरीर का तापमान जब 42° सेल्सियस तक पहुँच जाता है तब रक्त गरम होने लगता है और रक्त में उपस्थित प्रोटीन पकने लगता
है ।

👉  स्नायु कड़क होने लगते हैं इस दौरान सांस लेने के लिए जरुरी स्नायु भी काम करना बंद कर देते
हैं ।

👉 शरीर का पानी कम हो जाने से रक्त गाढ़ा होने लगता है, ब्लडप्रेशर low हो जाता है, महत्वपूर्ण अंग (विशेषतः ब्रेन) तक ब्लड सप्लाई रुक जाती है ।

👉 व्यक्ति कोमा में चला जाता है और उसके शरीर के एक-एक अंग कुछ ही क्षणों में काम करना बंद कर देते हैं, और उसकी मृत्यु हो जाती है ।

👉गर्मी के दिनों में ऐसे अनर्थ टालने के लिए लगातार थोड़ा-2 पानी पीते रहना चाहिए और हमारे शरीर का तापमान 37° मेन्टेन किस तरह रह पायेगा इस ओर  ध्यान देना चाहिए ।



Equinox phenomenon: इक्विनॉक्स प्रभाव आने वाले दिनों में भारत को प्रभावित करेगा ।

कृपया 12 से 3 बजे के बीच घर, कमरे या ऑफिस के अंदर रहने का प्रयास करें ।

तापमान 40 डिग्री के आस पास विचलन की अवस्था मे रहेगा ।

यह परिवर्तन शरीर मे निर्जलीकरण और सूर्यातप की स्थिति उत्पन्न कर देगा ।

(ये प्रभाव भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर सूर्य चमकने के कारण पैदा होता है) ।

कृपया स्वयं को और अपने जानने वालों को पानी की कमी से ग्रसित न होने दें ।

किसी भी अवस्था में कम से कम 3 लीटर पानी जरूर पियें । किडनी की बीमारी वाले प्रति दिन कम से कम 6 से 8 लीटर पानी जरूर लें ।

जहां तक सम्भव हो ब्लड प्रेशर पर नजर रखें । किसी को भी हीट स्ट्रोक हो सकता है ।

ठंडे पानी से नहाएं । इन दिनों मांस का प्रयोग छोड़ दें या कम से कम
करें ।

फल और सब्जियों को भोजन मे ज्यादा स्थान दें ।

हीट वेव कोई मजाक नही है ।

एक बिना प्रयोग की हुई मोमबत्ती को कमरे से बाहर या खुले मे रखें, यदि मोमबत्ती पिघल जाती है तो ये गंभीर स्थिति है ।

शयन कक्ष और अन्य कमरों मे 2 आधे पानी से भरे ऊपर से खुले पात्रों को रख कर कमरे की नमी बरकरार रखी जा सकती है ।

अपने होठों और आँखों को नम रखने का प्रयत्न करें ।

जनहित में इस सन्देश को ज्यादा से ज्यादा प्रसारित कर अपना और अपने जानकार लोगों का भला
करें ।

- साभार।

सोमवार, 25 मार्च 2019

प्री-वेडिंग वीडियो शूट, सोशल मीडिया पर उगलता जहर, दिखावे के लिए पनप रही पाश्चात्य संस्कृति


प्री-वेडिंग वीडियो और फोटो शूट का चलन इन दिनों बढ़ गया है। प्री-वेडिंग शूट शहरों से अब ग्रामीण परिवेश में भी अपनी जगह बनाने में कामयाब हो रहा है। पाश्चात्य संस्कृति को मिल रहा बढ़ावा भारतीय संस्कृति के लिए खतरा तो है ही साथ ही सामान्य परिवारों के लिए एक चुनौती भी। आर्थिक रूप से मजबूत परिवार अपने दिखावों के लिए एक अलग ही संस्कृति का निर्माण कर रहे हैं। बढ़ते प्री-वेडिंग ट्रेड से आजकल आधा भारत चिंतित भी नजर आ रहा है, लेकिन उनके आसपास ही पैर पसार रही पाश्चात्य संस्कृति में वह भी अपने आप को समायोजित करने में पीछे नहीं हट रहा। आजकल सोशल मीडिया पर प्री-वेडिंग का िवरोध ऐसे ही बढ़ा है जैसे इसका चलन। आजकल हर व्यक्ति अपना अलग तरीके से प्रजेंटेशन देना चाहता है। खुद को अलग साबित करने के लिए प्री-वेडिंग भी एक हिस्सा है।
अब समाज में यह बहस छीड़ रही है कि क्या वाकय में शादी से पहले पति-पत्नी का अन्य शहरों में जाकर शूट करवाना सही है। शादियांे में बॉलीवुड तड़के के बीच प्री-वेडिंग का प्रसारण हमारी संस्कृति और समाज को किस स्तर तक पहुंचाएगा। बहस हो रही है, लेकिन यह बहस सिर्फ चंद मिनटों में ही सीमट रही है। क्योंकि प्री वेडिंग वहीं परिवार करवा रहे है जो समाज में प्रतिष्ठित और आर्थिक रूप से सुदृढ़ है। 

दूसरी बात यह है कि प्री-वेडिंग की शुरुआत सिर्फ इसलिए की गई थी ताकी शादी से पहले जोड़े फ्रेंडली बन जाए। एक-दूसरे को पहचान ले। लेकिन अब इसका यह रूप विकराल ले रहा है। विकराल का मतलब भयानक नहीं है। लेकिन, यह भारतीय संस्कृति के लिए कठोरघात रूप ही है। दिल्ली में तो अब इसके लिए स्टूडियो तक बन रहे हैं। ताकी कपल को दूसरे शहरों में नहीं जाना पड़ा और स्टूडियो में ही अलग-अलग लोकेशन की शूट एक जगह ही हो सके। अब यह शूट फिल्मो की तरह भी होने लगे है, जैसे पहली बार कैसे मिलना हुआ, किस तरह प्रपोज किया वगैरह, वगैरह।  फिर इस फिल्म को रिसेप्शन में बताया जाता है। यह फिल्म कितनी हिट या फ्लॉप रही यह तो वह स्वयं ही आंकलन कर सकते है, लेकिन इससे भारतीय संस्कृति के पक्षकार जरूर असहज महससू करने लगे है।
हालांकि यह बात तो तय है कि पाश्चात्य संस्कृति अब भारत में कई गुणा अपने पैर पसार चुकी है। बदलते परिवेश और हालात से ही आजकल रिश्तों में भी खटास बढ़ी है। हर कोई व्यक्ति अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहता है। चाहेगा क्यों भी नहीं। मैं भी समर्थित हूं। हमें अपनी जिंदगी को जीने के लिए दूसरों के विचारों का बोझ उठाने की जरूरत नहीं है। लेकिन, हमें यह भी तो तय करना होगा कि हम अपनी जिंदगी को आसान बनाने के लिए कहीं समाज को तो बर्बादी पर नहीं पहुंचा रहे हैं। क्योंकि समाज ही एक ऐसा दायरा है, जिससे संगठित होने के सबूत मिलते है।
देश की समाजाें में लगातार बदल रहे नियमों की वजह हर सामाजिक प्राणी है। क्योंकि नियम सिखाने वालो अपनी बारी आते ही वह नियम घर के एक कोने में टांग लेते है। नियमों को िसर्फ उन लोगों पर थोपा जाता है जो समाज में सुख और आनंद से जिंदगी जीना चाहते है। क्योंकि साधारण व्यक्तित्व हम कमजोर समझते है। हालांकि प्री वेडिंग को भारतीय संस्कृति के कुछ पक्षकार भी स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन उनका मत है कि आजकल कई बार देखा गया है कि अंतिम समय में सगाई टूटना या शादी के कुछ ही समय बाद वापस अलग हो जाना आमबात हो गई है। इस स्थिति में प्रीवेडिंग नकारात्मक हो सकती है। इसीलिए इसका विरोध भी इन दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से बढ़ गया है। 

- अमित शाह

सोमवार, 4 मार्च 2019

वागड़ के खजुराहो में महाशिवरात्रि रही खास, क्याें, पढ़िए इस ब्लॉग में

नमस्कार,

खजुराहो नाम सुनते ही वागड़ का गामड़ी देवकी शिवालय स्मृति पटल पर चिन्हित होता है। आस्था के इस अनुठे केंद्र में 2019 की महाशिवरात्रि विशेष रही। चारों तरफ जलाशय और हरियाली से आच्छदित इस मंदिर में पहली बार हजाराें की संख्या में श्रद्धालुओं ने शिव दर्शन किए। बच्चों ने जहां झूलो का आनंद लिया, वहीं बड़ो ने भी दर्शनलाभ लेकर पुण्य अर्जित किया। भामाशाहों के सहयोग से महाप्रसाद का वितरण तो हुआ ही साथ ही मंदिर विकास के लिए भी दानदाताओं ने जोश और जज्बा दिखाया। नवयुवक मंडल की ओर से पूरी व्यवस्थाएं संभाली गई। ग्रामीणोंं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और हर काम में सहयोग किया। जिस वजह से यह पर्व एक मेले के रूप में ऊभरा।


जानिए क्यों खास है यह मंदिर

 डूंगरपुर जिले की सागवाड़ा तहसील का गामड़ी देवकी गांव जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर है। वागड़ के खजुराहो के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर को बारहवीं शताब्दी में बनाया गया था। स्थापत्य कला की दृष्टि से यह मंदिर अनूठा है। मंदिर के मुख्य द्वार पर भगवान गणेशजी और भैरवजी की आकृतियां उत्कीर्ण है। देवालय के मुख्यशिखर के नीचे शेर की कलात्मक प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के चारों और विभिन्न मुद्राओं में बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं बनी हुई है। इन प्रतिमाओ में शृंगारित प्रेम व आलिंगन की विविध मुद्राओं का सजीव अंकन हुआ है। इसी कारण इसे वागड़ का खजुराहो कहा जाता है।

मंदिर के ऊपरी हिस्से में भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा उत्कीर्ण है। इससे यह भी माना जाता है कि यह मंदिर जैन समाज से भी कुछ न कुछ जुड़ाव रहा होगा। मंदिर के सभा मंडप में 17 स्तंभ है। विशाल नंदी भी स्थापित है। वहीं रिद्धि-सिद्धि शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना है। यहां मत्रतें पूरी होने पर हवन और नगर भोज करवाना आम बात है। पुत्र रत्न प्राप्ति  की मुराद के लिए यह मंदिर विशेष माना जाता है। 2005 में यहां पर जर्मनी से भी पर्यटक आ चुके है। ऐसी मान्यता है की जब भी संकट की स्थिति आती है, यहां विराजमान नाग-नागिन झगड़ते दिखाई देते है।

देखिए तस्वीरों में मेला 


  - अमित शाह

मंगलवार, 1 जनवरी 2019

सरकार कर्जा माफ कर किसानों को कमजोर बनाए या सुविधाएं देकर मजबूत


मैं ना किसानों के खिलाफ हूं, ना सरकार के। लेकिन, निर्णयों के खिलाफ जरूर हो सकता हूं। यकीनन देशहित में विचार रखने की हम सभी आजादी रखते है। इसीलिए इस स्वतंत्रता का उपयोग कर रहा हूं। तीन राज्यों में नई सरकार बनते ही किसानों के कर्जा माफ का मुद्दा ज्वलंत है। राजस्थान में भी गहलोत सरकार ने इसकी घोषणा कर दी। यह सरकार के लिए इसलिए जरूरी था, क्योंकि इस बड़े चुनावी वादे के सहारे कांग्रेस अपना मुकाम हासिल करने में कामयाब रही। कृषि प्रधान देश में किसान की भावनाओं का ध्यान रखना हर सरकार का कर्तव्य है। पूर्ववर्ती सरकार ने भी किसानों को मोहित करने के लिए यह दाव खेला। लेकिन शायद आम इंसान को नई सरकार की घोषणा सहज लगी। चुनावी समय के दौरान हर पार्टी अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए ऐसी घोषणाएं करना जरूरी समझती है। संभवत: हमारे देश में यह परिपाटी की तरह आगे बढ़ रहा है कि लालच के बिना कुछ काम नहीं होता, चाहे उसके परिणाम घातक हो।
राजस्थान की ही बात करे तो सरकार की कर्ज माफी घोषणा से 18 हजार करोड़ रुपए का भार भी बढ़ेगा। इससे लाखों किसान राहत की सास भी लेंगे। लेकिन धरातल पर यह कहां तक सही है यह सोचना होगा। क्योंकि आत्महत्या तो बेरोजगार भी कर रहे हैं। आत्महत्या तो कम अंकों से उत्तीर्ण होने वाले छात्र भी करने का प्रयास करते है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम उन्हें अच्छे अंकों से उत्तीर्ण कर दे। आत्महत्या के डर से हम अयोग्य व्यक्ति को आरएएस बना दे, आईएएस बना दे। ऐसी परिस्थितियों में सरकारें क्या करती है। सीधा सा जवाब है, काउंसलिंग की जाती है। मोटिवेट किया जाता है। ताकी कोई गलत कदम नहीं उठाए। इसी परिप्रेक्ष्य में हमें कर्ज को समझना होगा।
आज किसान खाद के लिए लंबी कतार में लगा है। घंटों तक कतार में संघर्ष करने के बाद भी उसे खाद नहीं मिल पाती। वह गांव से शहर की ओर दौड़ लगता है और तीन-चार चक्करों के बाद उसे आधी अधूरी मात्रा में खाद मिल पाती है। सहकारी व्यवस्थाओं में खाद लेने वह नाकामयाब रहता है तो बाजार से भारी भरकम राशि अदा कर वह खाद का जुगाड़ करता है। ताकी, वह अपनी फसलों को जीवन दे सके। यही हाल बुवाई के समय बीजों के लिए होते है। किसान अपनी खेत की बुवाई, जुताई से लेकर फसल कटाई तक संघर्ष करता है। इसके बाद भी यदि पैदावार सही नहीं होती तो वह निराशाजनक स्थिति में चला जाता है। अब सवाल यह उठता है कि सरकार किसानों की जिंदगी को आसान बनाने में मदद क्यों नहीं करती।
क्या सरकारें ऐसी व्यवस्था नहीं कर सकती, जिससे किसानों को खाद बिना कतार में लगे मिल सके। खाद की कीमत न के बराबर या सहकारी समितियों के माध्यम से निशुल्क दिलवा सके। पैदावार की उपज उच्च दामों में हो सके। फसल कटाई के लिए बिना शुल्क चुकाए मशीनरी का इंतजाम कर सके। किसानों को सहयोग करने के लिए सरकार के पास अन्य विकल्प भी है। आज किसान मंडियों में अपना माल बेचने जाता है तो दिनभर भूख-प्यास से जूझता हुआ नजर आता है। वह घर से अपना अनाज मंडी तक लाने में हजारों रुपए का किराया खर्च कर देता है। क्या, किसान को अपनी मेहनत की कमाई को बिना किसी झंझट के हासिल कर सके यह हक नहीं है। कर्जा माफ कर हम कमजोर कर रहे हैं। यह थोड़े दिनों की खुशी है, लेकिन यह जिंदगी गुजारने का विकल्प नहीं। इससे किसान को कमजोर किया जा रहा है। उन्हें मजबूत करने के लिए सुविधाएं बढ़ानी होगी। किसानों की जरूरतों को आसानी से उपलब्ध करवाना होगा। ताकी वह देश की आजादी के इतने सालों बाद भी दूसरों पर निर्भर नहीं रहे। किसान देश का मजबूत पक्ष है। उसके योगदान के बिना देश अधूरा है। लेकिन यह विचारणीय है कि हम कब तक थोड़ी सी राहत देकर उनकी जीवन शैली के साथ खिलवाड़ करेंगे। हमें किसानों का स्तर ऊंचा रखने के लिए उनके हित में ऐसे कदम उठाने होंगे कि वह कर्ज के बजाए अपना संचय शुरू करे।
फिर भी सरकार के कर्ज माफी के निर्णय का स्वागत है, लेकिन हमें किसानों को मजबूत करने के लिए भविष्यकालीन सोचना होगा। ताकी आने वाली पीढिय़ां किसान को गरीबी के रूप में देखने की बजाए देश की मजबूती की हिस्सेदारी के रूप में देखे।
- अमित शाह
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amitbankora@yahoo.com