सोमवार, 4 मार्च 2019

वागड़ के खजुराहो में महाशिवरात्रि रही खास, क्याें, पढ़िए इस ब्लॉग में

नमस्कार,

खजुराहो नाम सुनते ही वागड़ का गामड़ी देवकी शिवालय स्मृति पटल पर चिन्हित होता है। आस्था के इस अनुठे केंद्र में 2019 की महाशिवरात्रि विशेष रही। चारों तरफ जलाशय और हरियाली से आच्छदित इस मंदिर में पहली बार हजाराें की संख्या में श्रद्धालुओं ने शिव दर्शन किए। बच्चों ने जहां झूलो का आनंद लिया, वहीं बड़ो ने भी दर्शनलाभ लेकर पुण्य अर्जित किया। भामाशाहों के सहयोग से महाप्रसाद का वितरण तो हुआ ही साथ ही मंदिर विकास के लिए भी दानदाताओं ने जोश और जज्बा दिखाया। नवयुवक मंडल की ओर से पूरी व्यवस्थाएं संभाली गई। ग्रामीणोंं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और हर काम में सहयोग किया। जिस वजह से यह पर्व एक मेले के रूप में ऊभरा।


जानिए क्यों खास है यह मंदिर

 डूंगरपुर जिले की सागवाड़ा तहसील का गामड़ी देवकी गांव जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर है। वागड़ के खजुराहो के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर को बारहवीं शताब्दी में बनाया गया था। स्थापत्य कला की दृष्टि से यह मंदिर अनूठा है। मंदिर के मुख्य द्वार पर भगवान गणेशजी और भैरवजी की आकृतियां उत्कीर्ण है। देवालय के मुख्यशिखर के नीचे शेर की कलात्मक प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के चारों और विभिन्न मुद्राओं में बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं बनी हुई है। इन प्रतिमाओ में शृंगारित प्रेम व आलिंगन की विविध मुद्राओं का सजीव अंकन हुआ है। इसी कारण इसे वागड़ का खजुराहो कहा जाता है।

मंदिर के ऊपरी हिस्से में भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा उत्कीर्ण है। इससे यह भी माना जाता है कि यह मंदिर जैन समाज से भी कुछ न कुछ जुड़ाव रहा होगा। मंदिर के सभा मंडप में 17 स्तंभ है। विशाल नंदी भी स्थापित है। वहीं रिद्धि-सिद्धि शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना है। यहां मत्रतें पूरी होने पर हवन और नगर भोज करवाना आम बात है। पुत्र रत्न प्राप्ति  की मुराद के लिए यह मंदिर विशेष माना जाता है। 2005 में यहां पर जर्मनी से भी पर्यटक आ चुके है। ऐसी मान्यता है की जब भी संकट की स्थिति आती है, यहां विराजमान नाग-नागिन झगड़ते दिखाई देते है।

देखिए तस्वीरों में मेला 


  - अमित शाह

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