पांच राज्यों के चुनावी नतीजों ने एक बार फिर कांग्रेस को हाशिए पर पटक दिया है। एक मजबूत पार्टी का इस तरह ताश के पत्तों की तरह ढेर हो जाना शोध का विषय है। आम भाषा मे कहा जाता है भाई जीना है तो जमाने के साथ चलना होगा। यही बात कांग्रेस पर भी लागू होती है। पुरानी परिपाटियों को छोड़ उन्हें अब नई जमीन तलाशने की जरूरत है। अब खुद का वर्चस्व बचाने के लिए आरपीएस यानी राहुल, प्रियंका और सोनिया गांधी को अपनी नीति बदलनी होगी। पंजाब को देखे तो सीधी सी गणित है कांग्रेस को भीतरघात ने ही हराया है। यहां तक की दिग्गज नेताआंे को भी औंधेमूंह लटकना पड़ा। कांग्रेस यूपी में तो पूरी तरह से बिखरी हुई प्रतीत आ रही है। कारण साफ है कि इस पार्टी को नई दिशा की जरूरत है। एक विशेष समुदाय को लेकर कांग्रेस का स्थायी टेग बना हुआ है। सबसे पहले तो इस टेग को कांग्रेस में खत्म करना होगा। इसके लिए उन्हें ही नई नीतियों को तलाशने की जरूरत है। विशेष समुदाय को भाजपा भी उतना ही सम्मान दती है जितना कांग्रेस। लेकिन, प्रतिद्वंदी किसी एक टेग को लेकर काम नहीं कर रही है। पहली सीख तो इसीसे लेनी चाहिए।
कांग्रेस में हमेशा पद के लिए विवाद रहा है। राजस्थान में भले ही कांग्रेस की सरकार है, लेकिन यहां भी दो गुट पायटल और गहलोत के रूप में सामने आ चुके है। हालांकि राजस्थान में जादूगर अपनी कला के माध्यम से दिल जीत लेते है, लेकिन हर जगह ऐसा जादू चले यह भी गारंटी नहीं है। मध्यप्रदेश इसका उदाहरण है। इसलिए आपसी खींचातान दूर करना आवश्यक है। सबसे पहले इसके लिए आरपीएस को ही पहल करनी होगी। उन्हें अब कांग्रेस की कमान परिपाटी के विरूद्ध नए चेहरे को सौंपनी होगी। नया चेहरा यानी ये नहीं किसी को भी उठाकर ले आए, लेकिन ऐसे चेहरे की जरूरत है जो सुना-सुना सा नजर आए। कांग्रेस ने यह सोचा भी होगा, लेकिन, सेवादार होने नहीं देते। सेवादारों की आदत होती है स्वयं के नंबर बढ़ाने के लिए वह अपने राजा की झूठी प्रशंसा कर लेते है। यहीं राहुल और प्रियंका के साथ हो रहा है। सेवादार उनकी कमियां बताने के लिए तैयार नहीं है और आरपीएस उनकी हो रही प्रशंसा को समझने के लिए तैयार नहीं है।
यदि कोई शिक्षक स्कूल में बच्चे की तारीफ हर रोज करने लगे तो वह भूल जाता है कि उसके अंदर कोई कमी भी है। ऐसे में वह बु़िद्धमान समझने लगता है और परीक्षा की घड़ी में वह जवाब दे देता है। यही हाल कांग्रेस का हुआ है। सेवादारों ने आरपीएस को यह अहसास ही नहीं होने दिया की अब नए चेहरों की जरूरत है। हालांकि चुनावों के दौरान लोगों ने जरूर इसका जवाब दिया है, लेकिन यह बात आलाकमानों को क्यों समझ नहीं आ रही यह परे है। एक बात और है कि यदि प्रतिद्वंद्वी अपना मजबूत हो तो हमें उससे मुकाबला करने का तरीका बदल देना चाहिए। कांग्रेस को प्रतिद्वंद्वी से आगे बढ़ने के लिए फोकस करना चाहिए, न की रोकने पर।
- अमित शाह, स्वतंत्र लेखक