तुलना और महत्वकांक्षा, यदि कोई सीमा से ज्यादा कर ले तो अंत बुरा होता है। हालांकि हर माहौल में यह बात सत्य नहीं लगती। लेकिन, हमारी लाइफ स्टाइल और पढ़ाई में इसकी बहुत बड़ी भूमिका है। तुलना और महत्वकांक्षा हमारे स्वयं की अन्य से और हमारी हमारे चाहने वालों की हो सकती है। हर व्यक्ति की अपनी पहचान होती है। कोई पढ़ाई में अव्वल है तो काई खेल में। कोई लिखने में अच्छा होता है तो काई बोलने में। हर व्यक्ति सभी विशेषताओं को समेट नहीं होता है। हमें हमारी काबिलियत और हमारी रूचि अनुसार ही आगे बढ़ने के प्रयास करने चाहिए। हम दूसरों को देखकर अपने लक्ष्य तय करेंगे तो संभव है हमें निराशा हासिल हो। कई बार यह निराशा अपने विचारों पर इतनी हावी हो जाती है कि हम कठोर गलत निर्णय ले लेते हैं। यहीं कारण है आज आत्महत्याओं के केस बढ़ रहे हैं। महत्वकांक्षाएं बढ़ा दी। स्वयं की तुलना अन्य से करने लगे। वहीं युवा जिंदगियां भी आत्महत्याओं के कारण तबाही देख रही है। उंचाइयां हर किसी को पसंद है, लेकिन सब आसानी से मिलना भी संभव नहीं है। विफलताएं अक्सर सफलताओं में तब्दिल की जा सकती है। लेकिन प्रयास जरूरी होते है।
हमें कई किस्से ऐसे मिल जाएंगे की दसवीं और बारहवीं फेल होने वाले भी आज सफल लोगों में शामिल है। यदि वह एक बार फेल होने से अपना जीवन समाप्त कर देते तो क्या होता। अवसर हमारे पास आते रहेंगे। अब किसी एक अवसर को सफलता में बदलना होता है। इसलिए विफलताओं पर डरना कायरता का प्रतीक है। पहली बात तो यह है कि हमें हमारी क्षमताओं को पहचान कर आगे बढ़ना है। दूसरी बात महत्वकांक्षाएं भी एक हद तक ही तय की जाए तो जिंदगी जीने के लिए बेहतर है।
एनसीआरबी द्वारा जारी 2021 की रिपोर्ट कहती है कि आत्महत्या से जान देने
वालों की संख्या एक साल में 8 लाख है। जिसमें से 20 फीसदी भारतीय
है। पिछले वर्ष 1 लाख 64 हजार लोगों ने अपनी स्वयं की जान ले ली। इसके पीछे रिपोर्ट में
कॅरिअर, अलगाव की भावना, दुर्व्यवहार, हिंसा, पारिवारिक
समस्याएं, मानसिक विकार, व्यसन शराब, वित्तीय नुकसान
जैसे कारण बताए है। इन सभी कारणों पर गौर करें तो यहां महत्वकांक्षा और तुलना
दोनों चीजें काम करती है। महत्वकांक्षा में हम ऐसा कदम उठा देते है कि जिसका
परिणाम हमारे पक्ष में नहीं रहता और हम गलत कदम उठाने के लिए तैयार हो जाते है।
- अमित शाह
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