कोविड़ – 19 ने जहां आम से लेकर उच्च पदों पर आसीन लोगों को भी प्रभावित किया, वहीं उसके दूसरे पहलू में कई फायदें भी दिखे। हालांकि महामारी, महामारी ही है। इससे जीवन खासा प्रभावित हुआ। लेकिन, फिर भी सकारात्मक सोच को अपनाना कोई गुनाह नहीं होगा। कई बार विपदाएं ही आविष्कार की जननी बनती है। समस्या आने पर ही इसके समाधान के लिए एक नई खोज विकसित होती है। कोविड़ के दौरान यह देखा भी गया है। भारत में आज वेक्सीनेशन का दौर चल रहा हैं। विदेशों में भारत की साख बढ़ी है। कोविड़ में भारत ने अन्य देशो में वेक्सीन पहुंचाकर यह भी साबित किया कि हम जो कहते हैं, उसे करने की क्षमता भी रखते हैं।
इस संदर्भ में हम आम लोगों की जिंदगी में झांककर देखे तो नजर आएगा कि इस बुरे दौर में भी सहयोग के लिए हाथ आगे बढ़े हैं। संगठन और समाज ने अपने स्तर पर इस काल में जुझ रहे लोगों को सहयोग करने का प्रयास किया है। हम वागड़ क्षेत्र की ही बात करे तो यह अहसास होगा कि यहां पर सहयोग और समाजसेवा की जो भावना थी, वह अब कई गुणा ज्यादा विकसित हो चुकी है। लॉकडाउन जैसे हालातों में भी लागों ने दाना-दाना इकट्ठा कर गरीबों का सहयोग किया। कई परिवारों ने अपनी कम आमदनी पर भी सहयोग का सिलसिला जारी रखा। यह तभी संभव था, जब हृदय में सहयोग करने की भावना जागृत हुई हो।
महामारी ने अपने पैर हर गांव में फैलाएं। इससे कोई अछूता नहीं है। कोई बीमारी से प्रभावित हुआ तो कोई आर्थिक रूप से। हालात ऐसे बन गए कि परिवार वाले ही एक-दूसरे से मिलने के लिए सौ बार सोचने लग गए। ऐसे हालातों में भी समाज सेवा के हाथ पीछे नहीं रहे। संगठनों ने घर-घर जाकर सहयोग किया। स्वयं की परवाह किए बिना लोग एक-दूसरे के सहयोग के लिए डटे रहे। इस काल में इन दृश्यों ने भावनाओं को बदला। सहयोग और समर्पण की भावना को गति मिली।
वागड़ धरा के परीप्रेक्ष्य में सहयोग और समर्पण पर चर्चा करना हितकर ही रहेगा। यहां वैसे भी धर्म और आस्था का भंडार, इस प्रकार है, जैसे मानों पूरा वागड़ एक ही परिवार है। हालांकि कुछ कमियां तो हर क्षेत्र में रहती हैं। लेकिन, फिर भी यहां पर समर्पण की भावना का पलड़ा भारी है। कोविड़ में एक बदलाव यह भी आया कि लोगों ने जीने का तरीका भी सीख लिया। प्राय:देखा गया कि लोग परिवार को छोड़कर जो भागमभाग करते थे, उसमें भी विराम लगा। परिवार की अहमियत बढ़ी। पाने की चाहत में हम बहुत कुछ खो देते है। महामारी ने यह भी सिखाया कि पाना ही सबकुछ नहीं है, जो हैं उसे संभालकर रखना भी बड़ा काम है।
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