बुधवार, 22 मार्च 2023

हर छोटे कदम से शुरू होता है सफलता का सफर, स्वच्छता हो या समाज शुरूआत स्वयं से जरूरी

12 दिसंबर 2016 को मैं एक खास मुलाकात को लेकर पहली बार इंदौर पहंुचा था। वहां जाते ही सबसे पहले दैनिक भास्कर की एक प्रति खरीदी। पहली खबर थी इंदौर भारत में सबसे स्वच्छ शहर का दर्जा हासिल कर चुका है। मन में ख्याल आया कि इतना बड़ा शहर इस प्रकार का खिताब कैसे जीत सकता है। स्वच्छता को बनाए रखना कितना मुश्किल होता है इतने बड़े शहर के लिए। लेकिन, जब शहर को देखा तो ऐसा लगा कि काम तो हुआ है। फिर सौभाग्य से मेरा विवाह भी इंदौर में ही हुआ। यहां पर मुझे मेरे हमसफर ने यह साबित कर दिया कि इंदौर की स्वच्छता का राज वहां रहने वाला वह हर नागरिक है, जो इंदौर को स्वच्छ रखना चाहता है। मैं शादी के बाद जब पहली बार इंदौर से राजस्थान बस में आ रहा था। रास्ते में हमने एक होटल से नाश्ता लिया और हमारी सीट पर बैठ गए। जब हमने नाश्ता कर दिया तो मैं नाश्ते की प्लेट रास्ते में फेंकने लगा। मेरी पत्नी ने मुझे टोका और फेंकने नहीं दिया। मैंने कहा-रात है, अभी कौन देख रहा है। लेकिन, उसने प्लेट फेंकने की अनुमति नहीं दी। जब तक अगला स्टेशन आया तब तक मैं प्लेट लेकर ही बैठा रहा। फिर अगले स्टेशन पर मुझे उसने कहा अब जाओ और डस्टबीन में डालकर आओ। 

स्वच्छता का यह वाकया साबित करता है कि कोई भी बड़ी सफलता के लिए हर छोटा कदम उपयोगी होता है। साथ ही सामुहिक सफलता के लिए शुरूआत स्वयं से करनी जरूरी होती है। यह वाकया हमें सुनने में जरूर मामूली सा लगता होगा, लेकिन यह बात तय है कि जब तक हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझेगा, तब ही हम सफल हो पाएंगे। इसी वजह से आज इंदौर छठीं बार सबसे स्वच्छ शहर का दर्जा हासिल कर चुका है। देश की प्रगति भी इसमें ही निहित है। यह जरूरी नहीं कि यह नियम हम किसी सामुहिक कार्य के लिए अमल में लाए, यह स्वयं के बदलाव को लेकर भी एक जरूरी सिद्धांत है।

आज के परिप्रेक्ष्य में यह बात इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि देश में कई ऐसे मामले है, जिसमें सलाह दी जाती है, लेकिन स्वयं इसकी पालना नहीं करते है। नतीजन वह बातें सिर्फ भाषणों और सोशल मीडिया पर अच्छी लगती है, लेकिन वास्तविकता में इसका कोई औचित्य नहीं रहता। आज स्वच्छता की बात कर रहे हैं तो मैं सबसे पहले सरकारी अस्पतालों की ओर रूख करूंगा। सरकारी महकमा अपने अस्पताल को स्वच्छ रखने के लिए कई प्रकार के जतन करता है। लेकिन, सफलता आशानुरूप नहीं मिल पाती है। फिलहाल कई अस्पतालों में बदलाव आए है, लेकिन बड़े स्तर के सरकारी अस्पतालो में जगह-जगह गंदगी और गुटखांे के पीक मिल जाएंगे। यह सामान्य सी बात है। इसमें हर बार अस्पताल प्र्रशासन को कटघरे में लिया जाता है। लेकिन इसके लिए सभी के प्रयास जरूरी है। यदि अस्पताल में आने वाला व्यक्ति यह सोच ली की मैं स्वच्छता के लिए नियमों की पालना करूंगा। इस परिसर में धूम्रपान नहीं करूंगा तो अपने आप ही स्थिति सुधर जाएगी। एक दिन वह भी आएगा कि हमें स्वच्छता के लिए ढोल नहीं पीटना पड़ेगा। निजी अस्पतालों में जहां नियमों की पालना सख्ती से होती है वहीं सरकारी व्यवस्था में ऐसा नहीं हो पाता है।  

- अमित शाह

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