अग्निपथ योजना आज देश का सबसे अहम मुददा बन चुका है। हम यहां पर यह बात नहीं करेंगे की यह योजना कितनी कारगर है या कितनी विफल। योजनाओं सफल रूप देने के लिए ही बनाई जाती है। कई बार विफलता मिलती है तो बहुत सारी सीख भी दे जाती है। जिसका भविष्य मंे फायदा जरूर मिलता है।
अग्निपथ योजना को देखकर लगता है कि संविदा पर होने वाली भर्तियों के लिए भी विकल्प खुलता है। सरकार संविदा पर भर्तियां करती है। जिसमें कई पदों पर युवा अत्यंत कम वेतन में जीवनयापन करता है। वह नियमित की आस में जिंदगी पूरी खफा देता है। उम्मीद और आशाओं को लेकर वह जीता है, लेकिन जब वृद्धावस्था में पहुंचता है तो उसके हालात बदत्तर हो जाते है। बदत्तर इसलिए कि वह उसके वेतन में सिर्फ परिवार का पालन कर सका, लेकिन वह इतना भी बचा नहीं पाया कि वृद्धावस्था में अपने स्वयं को पाल सके। संविदाकर्मी काम तो सरकार का करते हैं, लेकिन उन्हें हमेशा यही याद दिलाया जाता है कि वह ठेके पर है।
संविदाकर्मियों के संगठन इसी मायने में नियमितिकरण और वेतनमान को लेकर बार-बार धरने-प्रदर्शन को मजबूर होते है। कई बार नियमितिकरण की मांग को लेकर उग्र आंदोलन हो चुका है। राजस्थान में तो एक दशक पहले पुलिस को संविदाकर्मियों के पीछे घोड़े तक दौड़ाने पड़ गए थे। ऐसे हालातों से बचने के लिए अग्निपथ की तरह ही विकल्प खुला हुआ दिखाई देता है। अग्निपथ के नियम की तरह यदि सरकारें संविदाकर्मियों के लिए भी नियम लागू करे तो इसका स्वागत हर युवा करेगा। क्योंकि यह भविष्य को बांधकर नहीं रखता। एक अच्छे अनुभव से वाकीब कराकर जीवन में उन्नति के अवसर भी पैदा करता है।
एक संविदाकर्मी के लिए भी होना चाहिए कि पक्के नियम बने। उसका कार्यकाल शॉर्ट टर्म के लिए तय होना चाहिए। वेतनमान सम्मानजनक होनी चाहिए। वहीं शॉर्ट टर्म के बाद उन्हें भी एक निश्चित राशि देनी चाहिए। ताकी वह अपने भविष्य के लिए स्वयं का भी रोजगार शुरू कर सके। अभी कोई निश्चित नियम नहीं होने से वह ना तो नौकरी छोड़ पाते है ना ही चल रही नौकरी से जीवनयापन कर सकते है। संविदाकर्मियों को भी भर्तियों में 25 फीसदी तक आरक्षण दिया जा सकता है। जिससे शॉर्ट टर्म में नौकरी करने के लिए भी टेलेंटेड युवा आगे आएगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें